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थानाध्यक्ष मोहाना न्यायलय के आदेश को दिखा रहे आईना, हफ्तों बाद भी नहीं दर्ज हुआ FIR

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ब्यूरो रिपोर्ट : इंडिया टाइम्स न्यूज एजेंसी
सिद्धार्थ नगर(17/08/2025)


नारी सशक्तिकरण का ऐसा मजाक बनाया गया जो अकल्पनीय है एक तरफ महिला अपराधों पर सख्त कार्रवाई की बात शासन करता है तो दूसरी तरफ आदेशों का पालन न करके अपराधियों को संरक्षण दिया जाता है।

पुलिस महकमा बदनाम कुछ जिम्मेदार पदों पर आसीन लोगों के गलत क्रियाकलापों से होता रहता है।अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (पाक्सो एक्ट) सिद्धार्थ नगर द्वारा प्रकीर्ण फौजदारी वाद संख्या 187/2025 मोहम्मद हारुन बनाम शाहिद आदि अंतर्गत धारा 175(3) बीएनएसएस में दिनांक 06/08/2025 को आदेश पारित किया कि
“थानाध्यक्ष मोहाना जनपद -सिद्धार्थ नगर को आदेशित किया जाता है कि प्रस्तुत प्रकरण में विपक्षी के विरुद्ध यथोचित धाराओं में नियमानुसार मुकदमा पंजीकृत कर यथाशीघ्र विवेचना की कार्यवाही सुनिश्चित करें तथा प्रथम सूचना रिपोर्ट इस न्यायालय को अविलंब प्रेषित करें ”

उपरोक्त आदेश की ऐसी धज्जियां उड़ाई गयी है कि कोई भी कानून का जानकार कल्पना भी नहीं कर सकता है कि थानों में ऐसा भी होता है और यदि जिम्मेदार ऐसा करते हैं तो उनपर कार्रवाई क्यों नहीं होती है।

गरीब व्यक्ति थानों में मची लूट से बचने के लिए न्यायालय का मार्ग अपनाता है और वहा से आदेश पारित होंने के बाद भी पालन नहीं हो पाता है इसका फायदा वो असमाजिक तत्व उठाते हैं जो नाबालिग लड़कियों को बहला फुसलाकर भगा ले जाते है और माता पिता अपनी बच्ची का जीवन सुधारनें के लिए हर संभव कोशिश करते हैं लेकिन थानों में बैठे भ्रष्टाचारी न्यायालय के आदेशों पर भी कुंडली मार कर बैठ जाते हैं संकेत यही देते रहते हैं कि मोटी रकम दो वरना हम न्यायालय के आदेश को भी आदेश दे सकते हैं।

थानाध्यक्ष मोहाना द्वारा पीड़ित समय ही दिया जाता रहा है जहां आरोपियों की गिरफ्तारी शीघ्र सुनिश्चित होना चाहिए वहा एफआईआर दर्ज होने में हफ्तों लग जाते हैं तो हम कैसे कल्पना कर सकते हैं कि ऐसे गैरजिम्मेदार पुलिस से न्याय मिलेगा।

न्यायालय द्वारा आदेशित किया गया कि शीघ्र एफआईआर दर्ज की जाए जबकि ऐसा नहीं किया गया यह न्यायालय के आदेश का उल्लंघन नहीं तो क्या है?नियमित: आदेश रिसीव होने के दिन ही एफआईआर दर्ज होना चाहिए था लेकिन घूस न मिलने के कारण ग्रहण लग गया अपनें बचाव मे पुलिस कह सकती है कि हमने पैसा तो मांगा नहीं था लेकिन देरी खुद ब खुद संकेत दे रही है कि भेंट नहीं चढा तो ऐसा हुआ है।

आदेश में यह भी कहा गया है कि यथाशीघ्र विवेचना की कार्यवाही सुनिश्चित करें लेकिन विवेचना की कार्यवाही तब शुरू होगी जब एफआईआर पंजीकृत होगा जब एफआईआर ही नहीं पंजीकृत किया गया तो विवेचना कैसे शुरू होगी? यह क्रियाकलाप भी न्यायालय के आदेश के उल्लंघन की श्रेणी में आता है और यदि उच्च स्तरीय संज्ञान लिया जाए तो थानाध्यक्ष को कुछ इनाम मिल सकता है लेकिन जब उच्च स्तरीय संरक्षण में सब कुछ हो रहा है तो कैसे गैरजिम्मेदार लोगों पर होगी कार्रवाई?

न्यायालय द्वारा अंतिम में यह आदेश भी दिया गया कि यथाशीघ्र एफआईआर की कापी न्यायालय को उपलब्ध कराएं यह भी एक कागजी कोरम से अधिक कुछ नहीं दिखाई पडता है जब एफआईआर हफ्तों बाद भी नहीं पंजीकृत हुआ तो न्यायालय को कापी कैसे प्रेषित होगी?सारे नियम कानून को ताक पर रख दिया है थानाध्यक्ष मोहाना ने और पीड़ित को कहा जाता है कि अकेले आना किसी को साथ मत लाना इसका क्या अर्थ हुआ समझ से परे? मनचाहा बात मनवाने की बात ही होगी और इसके अतिरिक्त भी कुछ और हो सकता है आप सभी समझदार हैं समझ गये होंगे।

थानाध्यक्ष मोहाना रोहित उपाध्याय जनपद के अनेकों थानो में सेवा दे चुके हैं लेकिन कहीं ऐसा छाप नहीं छोड़ सके कि लोग कुछ विश्वास करें।ऐसे लापरवाह लोगों को यदि थानाध्यक्ष जैसे गरिमामई पद पर आसीन कर दिया जाऐगा तो ऐसा कुछ ही होगा जिसकी कल्पना भी नहीं किया जा सकता है।एक तरफ महिला सशक्तिकरण मनाया जाता है तो दूसरी तरफ महिला अपराध करनें वालों को संरक्षण दिया जाता है यहां तो शासन को ही आईना दिखा दिया गया।

थानाध्यक्ष मोहाना से देरी का कारण जाननें का प्रयास किया गया लेकिन उनके द्वारा न तो काल रिसीव किया गया और न ही कोई जवाब दिया गया।


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